Saturday, 9 July 2011

आज क्या बात है पीने का मज़ा ज़्यादा है |
उनके होठों से लगी इस मै का नशा ज़्यादा है ||

उनके अंदाज़ में मौसम की भी शोख़ी शामिल,
उसपे छाई हुई यह काली घटा ज़्यादा है ||

रिंद भी आके यूँ मैख़ाने में रुक जाते हैं,
आज हर सम्त ही साक़ी का समा ज़्यादा है ||

दुनिया कहती है कि उल्फ़त है ज़हर धीमा सा,
तल्खियाँ भी हैं मगर मीठा ज़रा ज़्यादा है ||


चूम के होठों से ख़ंजर जो उतारा दिल में,
क़त्ल करने की यह क़ातिल की अदा ज़्यादा है ||

उनको अहसास है ग़लती का मगर क्या कहिये,
आ तो जाते वह मगर उनकी अना ज़्यादा है ||

इश्क में शर्त वफ़ादारी की होती है ,
यह सबक़ हमने शुरू से ही पढ़ा ज़्यादा है ||

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