Saturday, 30 July 2011



दर्द-ए-उल्फत में आंसू बहाए बहुत
इश्क के रंज हमने उठाये बहुत

उनकी जुल्फों की खुशबू न हम पा सके
कहने को नाज़ उनके उठाये बहुत

साथ मिलकर कोई गुनगुनाया नहीं
गीत हमने मुहब्बत के गाये बहुत

उनसे इज़हार तक कर न पाई जुबां
कहने को होंठ हमने हिलाए बहुत

सूरते-हाल फिर भी संभल ना सकी
हमने तन से पसीने बहाए बहुत

वक़्त हमको कभी रास आया नहीं
अपनी हालत पे हम तिलमिलाए बहुत

आंसुओं के समंदर पिए उम्र भर
यूँ दिखावे को हम मुस्कराए बहुत

अंधी राहों पे ही लोग चलते रहे
हमने गलिओं में दीपक जलाये बहुत

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