Tuesday, 14 June 2011



परेशां है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ,
असर अन्दाज़ मुझपर हो रहा है तेरा ग़म कुछ कुछ,



वो अरमां अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में,
ख़ुदा के फ़ज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ,



ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती हैं,
ख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की क़सम कुछ कुछ,



ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की हों पूरी,
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ कुछ,



ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको,
जो चलने की सई की तो, हैं लरज़ीदा कदम कुछ कुछ,



मेरे एहसास पर भी छा, गयी वहदानियत देखो,
मुझे भी आ रही है अब तो, ख़ुशबू-ए-हरम कुछ कुछ,



क़रीब अपने जो आएगा, वो चाहे हो “रक़ीब” अपना,
मगर रख्खेंगे हम उसकी, मोहब्बत का भरम कुछ कुछ|

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